लेखनी कहानी -09-Mar-2023- पौराणिक कहानिया
सेवक-दल पर
प्रभु सेवक का
प्रभुत्व दिन-दिन
बढ़ता जाता था।
प्राय: सभी सदस्यों
को अब उन
पर श्रध्दा हो
गई थी, सभी
प्राणपण से उनके
आदेशों पर चलने
को तैयार रहते
थे। सब-के-सब एक
रंग में रँगे
हुए थे, राष्ट्रीयता
के मद में
चूर, न धान
की चिंता, न
घर-बार की
फिक्र, रूखा-सूखा
खानेवाले, मोटा पहननेवाले,
जमीन पर सोकर
रात काट देते
थे, घर की
ज़रूरत न थी,
कभी-कभी वृक्ष
के नीचे पडे
रहते,कभी किसी
झोंपड़े में। हाँ,
उनके हृदयों में
उच्च और पवित्रा
देशोपासना हिलोरें ले रही
थी!
समस्त देश में
संस्था की सुव्यवस्था
की चर्चा हो
रही थी। प्रभु
सेवक देश के
सर्व सम्मानित, सर्वजन-प्रिय नेताओं में
थे। इतनी अल्पावस्था
में यह कीर्ति!
लोगों को आश्चर्य
होता था। जगह-जगह से
राष्ट्रीय सभाओं ने उन्हें
आमंत्रिात करना शुरू
किया। जहाँ जाते,
लोग उनका भाषण
सुनकर मुग्धा हो
जाते थे।
पूना में राष्ट्रीय
सभा का उत्सव
था। प्रभु सेवक
को निमंत्राण मिला।
तुरंत इंद्रदत्ता को
अपना कार्यभार सौंपा
और दक्षिण के
प्रदेशों में भ्रमण
करने का इरादा
करके चले। पूना
में उनके स्वागत
की खूब तैयारियाँ
की गई थीं।
यह नगर सेवक-दल का
एक केंद्र भी
था, और यहाँ
का नायक एक
बड़े जीवट का
आदमी था, जिसने
बर्लिन में इंजीनियरी
की उपाधिा प्राप्त
की थी और
तीन वर्ष के
लिए इस दल
में सम्मिलित हो
गया था। उसका
नगर में बड़ा
प्रभाव था। वह
अपने दल के
सदस्यों के लिए
स्टेशन पर खड़ा
था। प्रभु सेवक
का हृदय यह
समारोह देखकर प्रफुल्लित हो
गया। उसके मन
ने कहा-यह
मेरे नेतृत्व का
प्रभाव है। यह
उत्साह, यह निर्भीकता,
यह जागृति इनमें
कहाँ थी? मैंने
ही इसका संचार
किया। अब आशा
होती है कि
जिंदा रहा, तो
कुछ-न-कुछ
कर दिखाऊँगा। हा
अभिमान!
संधया समय विशाल
पंडाल में जब
वह मंच पर
खड़े हुए, तो
कई हजार श्रोताओं
को अपनी ओर
श्रध्दापूर्ण नेत्रों से ताकते
देखकर उनका हृदय
पुलकित हो उठा।
गैलरी में योरपियन
महिलाएँ भी उपस्थित
थीं। प्रांत के
गवर्नर महोदय भी आए
हुए थे। जिसकी
कलम में यह
जादू है, उसकी
वाणी में क्या
कुछ चमत्कार न
होगा, सब यही
देखना चाहते थे।